मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

क्या ये विकास है ?


महंगाई की मार से आम आदमी की कमर टूट चुकी है मगर सरकार अपनी पीठ इस बात से थपथपा रही है कि देश कि विकास दर 8 फीसदी पर डांस कर रही है। कुछ समय पहले तक कि बात है राज्य और केन्द्र सरकार बढती मंहगाई पर साहनुभूति भरे ब्यान देती नही थकती थी और कुछ न करे तो मंहगाई कम करने कि उपाय जरूर सुझाती थी मगर देश के vit mantri प्रणब mukharji कहते हैं कि देश का विकास प्रगति पर है इसलिए मंहगाई के साथ rahna seekh lena chaihiye । देश के kaindriya krishi mantri तो और दो कदम aagai nikle उनके अनुसार सरकार मंहगाई के मामले me majboor है और कुछ दिन मंहगाई aisye ही chalegi .

सवाल है कि अगर देश के रहनुमा ही समस्या के सामने हथियार दाल दे तो देश कि ३० करोर आबादी जो गरीबी रेखा के निचे रहती है उसका भला क्या होगा।

कभी आर्थिक संकट तो कभी सूखे को बहाना बनाकर मंहगाई के मुद्दे से पल्ला चाड्ती रहने वाली सरकार मंहगाई के असली कारणों पर नकेल आख़िर क्यों नही कसती hai वो दाल , चावल , चीनी , और तमाम खाद्यापदार्ठो की काला बाजारी पर रोक क्यों नही लगाती है । बड़ी कम्पनियों की पहल को रोक सीधे किसान से संपर्क साधती क्यों नही है ?

गन्ना किसानो के साथ अफ आरपी और सैप की लड़ाई को सरकार नजरंदाज करती रही है तभी मजबूर और क़र्ज़ के बोज तले दबे गन्ना किसानो ने अपने खेतो को आग के हवाले कर दिया ।

आज हालत है की वही किसान चोरी छिपे अपने लाखो कुन्तल गन्ना नेपाल के मिल मालिको को बेच रहे हैं ।

सवाल है आख़िर वो और करे भी क्या ? aur daish me chini bhla kam kyon nahi hogi?

१५ फीसदी की गति से बढती मंहगाई की ट्रेन पर लगाम शायद तब तक नही लग सकती जब तक देश में पीदिईस सार्वजनिक वितरण प्रणाली में जरुरी सुधार नही किया जाएगा उसमे फैले नौकरशाही रुपी भ्रस्ताचार का खत्म नही किया जाता है ।

महज देश की जीडीपी देश का विकास तय उतना नही करती बल्कि बूख और कुपोषण से अगर देश के २२ करोर लोग सोते हैं तो ऐसे देश की विकास पर लानत है।