इस दुनिया के मंच पर कई दुनिया बस्ती हैं।
अमीरी के चश्मे से चमकती रोशन एक दुनिया,
दूर कहिं चूल्हे की राख में खाक होती एक दुनिया,
नन्ही सी आँखे जाने किस दुनिया को आँखों आँखों में तोलती हैं।
ये है ताकत की दुनिया, वो रसूफ़ की एक दुनिया,
जात के घाव से घायल एक गली चलती है यंहा,
उंच नीच की एक बस्ती भी बस्ती भी बस्ती है यंहा।
ये दुनिया तेरी है वो मेरी भी एक दुनिया,
रोज़ सपनो के शहर बसाती एक दुनिया।
गरीबी की गोद में गुम है एक दुनिया,
मखमल के पर्दों में लिपटी एक दुनिया।
है हर नज़र की अपनी एक दुनिया,
वाह री दुनिया वाह री दूँ ....
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